मेरे पर्वतारोहण की शुरुआत (भाग १ ) 

आज की भाग दौड़ वाली जिंदगी में अगर कोई पूछ ले की कि बेटा बडे होकर क्या बनना चाहते हो तो अधिकतर लोग शायद बता सकते हैं परन्तु मेरे जैसे बच्चे के लिए ये बहुत कठिन प्रश्न था क्योंकि चंचल मन बहुत कुछ करना चाहता है और जो कुछ अलग हट कर हो या जो हर कोई नहीं कर सकता वो मुझे करना था पर क्या ? बात लगभग 2012-13 की थी मुझे एक NGO में काम करते करते काफी समय हो गया था और 10 से 5 की जॉब मुझे थकाने लगी थी जैसे जीवन से उत्साह ख़त्म होने लगा हो | जिंदगी नीरस से भरी थी | हमारे ऑफिस में एक मैडम थी नाम था उनका कंचन | उनसे बात करने में बहुत अच्छा लगता था जैसे दिल को बड़ा सुकून मिलता है वैसे | मैं अक्सर अपने मन की इच्छाए उन्हें बताती थी क्योंकि उनके अंदर वो गुण था की वो शायद मेरे लिए कुछ ना कर सकें पर मेरी बातों को सुन के मेरे उत्साह को बढ़ा देती थी | 

वो एक दिन हर दिन की ही तरह ही था उनके ऑफिस आते ही मैंने उनसे बातें करनी शुरू कर दी ,की कुछ करना चाहती हूँ मैं | कुछ अलग पर समझ नहीं आ रहा है कि क्या? थोड़ी देर मेरी बातें सुनने के बाद वो बोली की " अच्छा मुझे ये बताओ की ऐसा कौन सा काम है जो तुम बिना थके लगातार कर सकती हो ? मुझे सोचने में थोडा सा ही समय लगा और मैंने कहा की घूमना |  मुझे पहाड़ों पर घूमना बहुत पसंद है और ये ऐसा काम है जो मैं बिना थके, रुके और लम्बें समय तक कर सकती हूँ | मेरा जवाब खत्म होते ही मैडम तुरंत बोली " Why don't you go for mountaineering course "? इससे पहले ये माउंटेनियरिंग शब्द मैंने कभी सुना ही नहीं था | थोड़ी जिज्ञासा हुई की प्लीज् मैडम बताओ ना इसकी बारें में ? उन्होंने कहा की क्या तुमनें कभी नेहरु इंस्टिट्यूट ऑफ़ माउंटेनियरिंग जो की उत्तकाशी में है उसका नाम सुना है | मैंने कहा सुना तो है पर वहां होता क्या है वो नहीं मालूम | उन्होंने कहा की मुझे लगता है तुम वहां होने वाले कोर्सेज के बारे में थोडा रिसर्च करो|  बस खोला गूगल और लगी सर्च करने | पढाई के नाम से तो मुझे बोरियत आती थी पर ये पहली बार था जिसके बारें में लगातार २-३ घंटो तक पढ़ती रही और काफी रोचक भी लगा | अब माउंटेनियरिंग से सम्बंधित जितने भी महारथी रहें हैं सभी को गूगल की मदद से ढूँढ डाला | जिंदगी में पहला ये कार्य था जो मैंने इतनी जल्दी किया हो | सबसे पहले बछेंद्री पाल मैडम के बारे में पढ़ा | और फिर क्या था अपने किसी मीडिया में काम करने वाले दोस्त को कॉल किया और मैडम का मोबाइल नंबर ले लिया | उस दिन पहली बार मुझे अपने मास कम्युनिकेशन कोर्स  करने की अहमियत समझ आई | | बछेंद्री पाल मैडम से क्या-क्या बात हुई इसका जिक्र मैं आगे करुँगी | उधर मैंने इंस्टिट्यूट की वेबसाइट पर भी जा कर फ़ोन नंबर पर डायल कर दिया और लगी पूछने की सर मैं बेसिक माउंटेनियरिंग कोर्स के लिए आवेदन  करना चाहती हूँ क्या करना होगा ? उधर से आवाज़ आयी की 2013 के रजिस्ट्रेशन ख़त्म हो चुके हैं आप अगले साल के लिए आवेदन कर सकती हैं | थोडा सा बुरा लगा पर सुकून भी की शायद अब मैं समझ गयी थी की मैं क्या करना चाहती हूँ ?
अगले दिन सुबह ऑफिस आते ही मैंने सबसे पहला काम किया वो था माउंटेनियरिंग कोर्स के लिए आवेदन करना | आवेदन से सम्बंधित जितनी भी formalities थी वह काफी लम्बी थी बरहाल मैंने अपना फॉर्म और मेडिकल टेस्ट फॉर्म भी भर के भेज दिया | लगभग २ माह के बाद मुझे एक मेल आया की आपको मई में २० तारीख को नेहरु इंस्टिट्यूट ऑफ़ माउंटेनियरिंग उत्तरकाशी पहुंच कर रिपोर्ट करना है | अच्छा फॉर्म भरने के समय फॉर्म में माता पिता दोनों के हस्ताक्षर होने  जरूरी हैं और जब मैंने अपने मम्मी पापा को बताया तो साफ़ मना हो गया कि चुपचाप अपनी जॉब करो अब ये सब पचड़ो में मत पड़ो| मैं भी थोडा हठी किस्म की लड़की थी जो सोच लिया तो सोच लिया | गलत काम नहीं करना चाहती थी पर मम्मी पापा को कोर्स के लिए  मनाने का मन नहीं हुआ और चुपचाप मम्मी पापा के खुद ही हस्ताक्षर किये और भेज भी दिया |
अब जब मेल आया तो घरवालों को बताया गया फिर क्या था वो खुद हैरान हो गये की बिना हमारी सहमति और सिग्नेचर के कोर्स का मेल कैसे आ गया | कुछ दिन मम्मी पापा से  बातचीत बंद रही पर मैं भी उनकी ही बेटी थी वो  जानते थे की अब कोई भी चीज़ इसको नहीं रोक पायेगी | 

आख़िरकार वो दिन आ ही गया जब नेहरु इंस्टिट्यूट जाना था | सुबह 5 बजे माँ ने चाय दी और बोली की क्या सारा सामान रख लिया है की नहीं ? माँ का ये पूछना अच्छा लगा | वो दोनों अभी भी नाराज़ थे पर मेरे जाने का दिन आ गया था तो थोड़ी चिंता उनके चेहरे पर थी उसका कारण ये भी था की निम् में जो फॉर्म भर के भेजना होता है उसमें एक declaration फॉर्म भी होता है जिसमे लिखा होता है की यदि हमारे बच्चे को कुछ हो जाता है तो उसकी जिम्मेदारी निम् की नहीं होगी | उनके मुझे ना भेजने का सबसे बड़ा कारण यही था | खैर ! फिर मम्मी पापा दोनों परेड ग्राउंड आये और वहां से सूमो से मैं  उत्तरकाशी के लिए निकल पड़ी | विदा करते हुए माँ की आँखें भर आई और साथ में मेरी भी | उत्तरकाशी पहुँच कर भंडारी होटल के सामने निम् की बस आ रही थी और वहीँ से उसमें बैठना था जो आपको निम् के कैंपस तक लेकर जाने वाली थी | निम् की बस आई और सभी अलग अलग राज्यों से आये बच्चे उसमें बैठ गये | बस में बैठ कर जाना ऐसा महसूस आर्मी के जवान होने जैसा फील करवा रहा था | पहाड़ो के बीच होते हुए रास्ता किसी पुरानी फिल्म के किसी सीन का अहसास करवा रहा था | आख़िरकार उत्तरकाशी से लगभग आधे घंटे के बाद जैसे ही नेहरु इंस्टिट्यूट ऑफ़ माउंटेनियरिंग (निम् ) में प्रवेश किया मानो सपनों की दुनिया में पहला कदम रख दिया हो |

 भाग २ में आप जान पाएंगे की नेहरु इंस्टिट्यूट ऑफ़ माउंटेनियरिंग  (निम्) में प्रवेश कैसे हुआ और वहां पहुँच कर क्या-क्या गतिविधियाँ पूरे कोर्स के दौरान करवाई जाती है ?

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